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संस्कृत शब्द असणारा कोश कोणता?

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संस्कृत शब्द असणारा कोश कोणता?

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(१) जहाँ तक संस्कृत कोशों का संबंध है, शब्दप्रकृति के अनुसार उसके तीन प्रकारह कहे जा सकते हैं -
शब्दकोश,
लौकिक शब्दकोश, और
उभयात्मक शब्दकोश
(२) वैदिक निघंटुओं की शब्द-संग्रह-पद्धति क्या थी, इसका ठीक ठीक निर्धारण नहीं होता। पर उपलब्ध निघंटु के आधार पर इतना कहा जा सकता है कि उसमें नाम, आख्यात, उपसर्ग और निपात चारों प्रकार के शब्दों का संग्रह रहा होगा। परंतु उनका संबंध मुख्य और विरल शब्दों से रहता था और कदाचित् वेदविशेष या संहिताविशेष से भी प्रायः वे संबद्ध थे। वे संभवतः गद्यात्मक थे।
(३) लौकिक संस्कृत की कोशपरंपरा में 'अमरपूर्व' कोशकारों की दो पद्धतियाँ थीं - एक 'नामतंत्र' और दूसरा 'लिंगतंत्र'। इस द्बितीय विधा के कोशों में सस्कृत शब्दों के प्रयोगों में स्वीकार्य लिंगों का निर्दश होता था। एकलिंग, द्बिलिंग, त्रिलिंग शब्दों के विभाग के अतिरिक्त अर्थवतलिंग और नानालिंग के प्रकरण भी इनमें हुआ करते थे। ये कोश अनुमान के अनुसार गद्यात्मक थे।
(४) नामतंत्रात्मक कोशों की भी दो विधाएँ होती थीं— एक समानार्थक शब्दसूचीकोश (जिसे आज पर्यायवाची कोश कहते है) और दूसरा अनेकार्थकोश या नानार्थ कोश।
(५) 'अमरसिंह' के कोशग्रंथ में 'नामतंत्र' और 'लिंगतंत्र' दोनों का समन्वय होने के बाद जहाँ एक ओर कोश उभयनिर्देशक होने लगे वहाँ कुछ कोश 'अमरकोश' के अनुकरण पर ऐसे भी बने जिनमें समानार्थक पर्यायों और अनेकार्थक शब्दों —दोनों विधाओं की अवतारण एकत्र की गई। फिर भी कुछ कोश (अभिधान चिंतामणि और कल्पद्रु आदि) केवल पर्यायवाची भी बने, और कुछ कोश— विश्वप्रकाश, मेदिनी, नानार्थार्णवसंक्षेप— आदि नानार्थकोश ही है। 'वर्णादेशना' सदृश कोशों को छोड़कर संस्कृत कोश प्रायः पद्यात्मक हैं। इनमें मुख्य छंद अनुष्टुप् है। कभी कभी बहुछंदवाले कोश भी बने।
(६) अमरकोश' की पद्धति पर कुछ कोशों में शब्दों का वर्गीकारण, स्वर्ग, द्योः, दिक्, काल आदि विषयसंबद्ध पदार्थों के आधार पर कांडों, वर्गों, अध्यायों आदि में हुआ और आगे चलकर कुछ में वर्णानुक्रम शब्दयोजना का भी आधार लिया गया। इनमें कभी सप्रमाण शब्दसंकलन भी हुआ।
(७) अनेकार्थकोशों में विशेष रूप से वर्णाक्रमानुसारी शब्दसंकलन-पद्धति स्वीकृत हुई। उसमें भी अंत्यक्षर (अर्थात् अतिम स्वरांत व्यंजन) के आधार पर शब्दसंकलन का क्रम अपनाया गया और थोड़े बहुत कोशों में आदिवर्णानुसारी शब्द-क्रम-योजना भी अपनाई गई। अत्यवर्णानुसारी कोशों की उक्त योजना का आधार कहीं-कहीं निर्दिष्ट वर्ग या उच्चारणास्थान होता था। इनमें कभी-कभी अक्षर संख्यानुसार भी एकाक्षर, द्वयक्षर, त्र्यक्षर आदि के क्रम से शब्दवर्गों का विभाजन भी किया गया है।
(८) इन विशेषताओं के अतिरिक्त एकाक्षरकोशमाला और द्बिरूपकोश नामक शब्दकोशों की दो विधाओं का उल्लेख मिला है। एकार्थनाममाला, 'द्वयर्थनाममाला' आदि ग्रंथ आज उपलब्ध नहीं हैं तथापि कोशकार 'सौहरि' के नाम से निर्मित वे कोश कहे गए हैं। 'राक्षस' कवि का 'षडर्थनिर्णयकोश' भी उल्लिखित है। 'षड्मुखकोश'- वृत्ति भी संभवतः ऐसा ही टीकाग्रंथ था। 'वर्णदेशाना' गद्यात्मक कोश है। वैकल्पिक रूपों का भी एकाध कोशों में निर्देश किया गया है।
(९) कुछ कोशटीकाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि संस्कृतकोश के युग में बड़े कोशों के संक्षेपीकरण द्बारा व्यवहारोपयोगी लघु रूप के निर्माण की पद्धति भी प्रचलित थी। संस्कृत के वैयाकरणो में भी 'बृहत्' और 'लघु' संस्करणों के संपादन की प्रवृत्ति मिलती है जैसे— 'लघुशब्देंदुशेखर', 'बृहतच्छब्देंदुशेखर', 'बालमनोरमा', 'प्रौढ़मनोरमा', तथा 'लघुसिद्धांतकौमुदी'। 'राजमुकुट' कृत अमरकोश टीका में 'बुहत्अमरकोश', सर्वदानंद द्बारा 'बृहानंद अमरकोश' और 'भानुदीक्षित' द्बारा 'बृहत् हारावली' के नाम् उल्लिखित है। ऐसा मालूम होता है कि इन्ही ग्रंथों के संक्षिप्त संस्करण के रूप में 'हारवली' और 'अमरकोश' आदि निर्मित हुए हैं।
(१०) आनुपूर्वमूलक वैकल्पिक शब्दों के संकल भी कहीं-कहीं मिल जाते हैं। 'शब्दार्णवसंक्षेप' में पर्यायों की प्रवृत्तिमूलक सूक्ष्म अर्थच्छाया की भेदपरक व्याख्या भी मिलती है। 'कल्पद्रुकोश' में लिखित म० म० रामावतार शर्मा के कथन से यह भी पता लगता है कि अतिप्राचीन 'व्याडि' के कोश में कभी कभी अर्थनिर्देशन के लिये व्युत्पत्तिपरक सूचना भी दी जाती रही है।
(११) पालि, प्राकृत और अपभ्रंश कोशों में कुछ नवीनता लक्षित नहीं होती। इतना अवश्य है कि पाली कोशों में बौद्धमत के परिभाषिक शब्दों का काफी परिचय मिल जाता है और पाली के बहुत से शब्दों का अर्थज्ञान भी हो जाता है। 'पाली' का महाव्युत्पत्यात्मक कोश गद्यात्मक है।
(१२) प्राकृत कोशों में अधिकतः देशी शब्दकोश और देशी नाममालाएँ हैं। इनमें अव्युत्पन्न माने गए देशी शब्दों का संकलन हैं। कुछ में जैन प्राकृत ग्रंथों के संपर्क
उत्तर लिहिले · 14/11/2017
कर्म · 3710
0
संस्कृत शब्द असणारा कोश
उत्तर लिहिले · 15/1/2022
कर्म · 0
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संस्कृत शब्द असणारा अनेक कोश (dictionary) उपलब्ध आहेत. त्यापैकी काही प्रमुख कोश खालील प्रमाणे:

  • अमरकोश: हा संस्कृतमधील सर्वात प्राचीन आणि प्रसिद्ध कोशांपैकी एक आहे. यात शब्दांचे अर्थ सोप्या पद्धतीने दिलेले आहेत.
  • शब्दकल्पद्रुम: हा 19 व्या शतकात तयार झालेला संस्कृत भाषेतील एक मोठाencylopedic कोश आहे.

    अधिक माहितीसाठी:

    विकिपीडिया - शब्दकल्पद्रुम
  • वाचस्पत्यम्: हा देखील संस्कृत भाषेतील एक महत्त्वाचा आणि विस्तृत कोश आहे.
  • संस्कृत-हिंदी कोश: अनेक संस्कृत-हिंदी कोश उपलब्ध आहेत, जे संस्कृत शब्दांचे हिंदीमध्ये अर्थ देतात.
  • मोनियर-विलियम्स संस्कृत-इंग्लिश डिक्शनरी: सर मोनier मोनier-विलियम्स यांनी तयार केलेला हा कोश संस्कृत-इंग्रजी भाषांसाठी खूप उपयुक्त आहे.

    अधिक माहितीसाठी:

    विकिपीडिया - मोनier मोनier-विलियम्स

आपल्या गरजेनुसार आपण यापैकी कोणताही कोश वापरू शकता.

उत्तर लिहिले · 16/3/2025
कर्म · 1040

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