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नेकी कर चुले मे डाल?

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नेकी कर चुले मे डाल?

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नेकी कर दरिया में डाल '
यह कहावत पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। सभी धर्मों में नेकी (पुण्य) को एक अहम मुकाम हासिल है और दुनिया के सभी धर्मों में दान-पुण्य को प्राथमिकता दी गई है। किसी गरीब की तन , मन , धन से मदद करना ही दान (खैरात) है। खैरात करना या दान करना किसी मनुष्य को औरों से अलग करता है और उसे श्रेष्ठता प्रदान करता है। इस्लाम में भी जकात , खैरात , सदका , फितरा इत्यादि को बड़ा पुण्य माना गया है , साथ ही जकात (एक विशेष प्रकार का दान) को मुसलमानों पर फर्ज (कर्त्तव्य) करार दिया है। जकात का अर्थ है कि जिसके पास एक नियत राशि में धन-संपत्ति हो , वह हिसाब लगाकर ईमानदारी से उसका चालीसवां भाग निर्धनों पर या नेकी की अन्य बातों पर व्यय कर दिया करे। लेकिन हदीस में यह भी उल्लेख है कि आप किसी गरीब या लाचार की मदद इस प्रकार करें जैसे वह आपका फर्ज (कर्त्तव्य) हो , अर्थात दाएं हाथ से दान करें तो बाएं हाथ को भी पता नहीं चलना चाहिए कि दाएं ने क्या दिया। मन में यह अहंकार कभी नहीं आना चाहिए कि मैंने किसी की मदद कर दी इसलिए बदले में अल्लाह मुझे आखिरात (मरने के पश्चात की दुनिया) में जन्नत (स्वर्ग) देगा। अल्लाह कहता है कि मैं अहंकार बर्दाश्त नहीं करता तथा अहंकारी को प्रतिफल के रूप में कुछ भी मिलने वाला नहीं। इसलिए दान करें तो किसी को दिखाकर या ढिंढोरा पीटकर नहीं , बल्कि शुद्ध मन से ही करें। कुछ लोग नाम कमाने तथा समाज में प्रतिष्ठा पाने के ख्याल से ही दान-पुण्य किया करते हैं तथा इसका फायदा कई रूपों में उठाते हैं। लेकिन इस्लाम में अपनी प्रतिष्ठा के लिए दान-पुण्य करना घोर पाप है , जो अल्लाह के घर क्षमा के योग्य नहीं है। इस्लाम की बुनियादी शिक्षाओं ईमान (कलमा) और नमाज के बाद जकात का स्थान है , अर्थात् जकात इस्लाम का तीसरा फर्ज है। कुरान शरीफ में भी जगह-जगह पर नमाज के साथ-साथ जकात की ताकीद दी गई है। उसमें अनेक जगहों पर स्पष्ट किया गया है कि नमाज पढ़ो और जकात दिया करो। इससे ज्ञात होता है कि जो जकात नहीं देते , वे सच्चे मुसलमान नहीं हैं। कुरान में यह भी लिखा है कि उन सभी का अंत बहुत बुरा होने वाला है , जो जकात (दान-पुण्य) नहीं देते। वे आखिरात (प्रलय) में नरक के भागीदार बनेंगे। दान-पुण्य एक सामाजिक कर्त्तव्य भी है , जो एक मनुष्य को दूसरे मनुष्य के करीब ले जाता है तथा दूसरे लोगों के दुख को बांटने का एक प्रमुख तरीका भी। दान मनुष्य तभी करता है , जब वह सामाजिक होता है , परंतु सामाजिक बनने के लिए हृदय एवं आत्मा का शुद्ध होना अति आवश्यक है। दान पुण्य तो दुनिया के सभी धर्मों में करने की व्यवस्था है , लेकिन दान कर देना मात्र ही बड़ी बात नहीं , वास्तव में जकात या दान हमें कमजोरों और गरीबों की मदद करना सिखाता है , क्योंकि अल्लाह के सामने कोई बड़ा या छोटा नहीं , सभी एक समान हैं। उसके सामने न कोई राजा है और न कोई रंक - क्योंकि समाज में सभी एक दूसरे के पूरक हैं। अमीरों के बिना गरीबों की कल्पना नहीं और गरीबों के बिना अमीरों की कोई बिसात नहीं। हम भी दूसरों से किसी मदद की उम्मीद तभी रख सकते हैं , जब हम खुद भी दूसरों के मददगार रहे हों। दुनिया में सबसे ज्यादा खुश वही है जो दानी है। किसी लाचार की सहायता करना एक ऐसे सच्चे सुख की अनुभूति है जो किसी अन्य कार्य में नहीं मिल सकता। जकात या दान का जो फल और पारितोषिक अल्लाह की ओर से परलोक में मिलेगा , उसके अलावा इस लौकिक जीवन में भी उससे बड़े लाभ हैं। दान करने वाले इंसान का हृदय प्रसन्न और संतुष्ट रहता है। गरीबों को उससे डाह नहीं होती , वरन वह उसका भला चाहते हैं और उसके कल्याण की कामना करते हैं। समाज में ऐसे ही व्यक्ति को लोगों का सम्मान , प्रेम और सहानुभूति प्राप्त होती है। इस धरती पर किसी शख्स पर खुदा की इससे बड़ी मेहरबानी और क्या होगी!
उत्तर लिहिले · 20/12/2017
कर्म · 123540
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"नेकी कर, दरिया में डाल" ही एक म्हण आहे.

अर्थ: याचा अर्थ असा होतो की चांगले काम करा आणि त्याबद्दल विसरून जा.

चांगले काम केल्यानंतर त्या कामाचा Demerit गाऊ नका, त्या कामाची परतफेडची अपेक्षा ठेवू नका.

इंग्रजीमध्ये याला "Do good and cast it into the river" असे म्हणतात.

उत्तर लिहिले · 17/3/2025
कर्म · 980

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