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पंचशील करार भारताने कोणत्या देशांबरोबर केला?
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चशील समझौते पर 50 साल पहले 29 अप्रैल 1954 को हस्ताक्षर हुए थे.
चीन के क्षेत्र तिब्बत और भारत के बीच व्यापार और आपसी संबंधों को लेकर ये समझौता हुआ था.
इस समझौते की प्रस्तावना में पाँच सिद्धांत थे जो अगले पाँच साल तक भारत की विदेश नीति की रीढ़ रहे. इसके बाद ही हिंदी-चीनी भाई-भाई के नारे लगे और भारत ने गुट निरपेक्ष रवैया अपनाया.
फिर 1962 में चीन के साथ हुए युद्ध में इस संधि की मूल भावना को काफ़ी चोट पहुँची.
पंचशील शब्द ऐतिहासिक बौद्ध अभिलेखों से लिया गया है जो कि बौद्ध भिक्षुओं का व्यवहार निर्धारित करने वाले पाँच निषेध होते हैं.
तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने वहीं से ये शब्द लिया था.
इस समझौते के बारे में 31 दिसंबर 1953 और 29 अप्रैल 1954 को बैठकें हुई थीं जिसके बाद अंततः बेइजिंग में इस पर हस्ताक्षर हुए.
समझौता मुख्य तौर पर भारत और तिब्बत के व्यापारिक संबंधों पर केंद्रित है मगर इसे याद किया जाता है इसकी प्रस्तावना की वजह से जिसमें पाँच सिद्धांत हैं-
पंचशील
एक दूसरे की अखंडता और संप्रभुता का सम्मानपरस्पर अनाक्रमणएक दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करनासमान और परस्पर लाभकारी संबंधशांतिपूर्ण सह-अस्तित्व
इस समझौते के तहत भारत ने तिब्बत को चीन का एक क्षेत्र स्वीकार कर लिया. इस तरह उस समय इस संधि ने भारत और चीन के संबंधों के तनाव को काफ़ी हद तक दूर कर दिया था.
भारत को 1904 की ऐंग्लो तिबतन संधि के तहत तिब्बत के संबंध में जो अधिकार मिले थे भारत ने वे सारे इस संधि के बाद छोड़ दिए, हालाँकि बाद में ये भी सवाल उठे कि इसके एवज में भारत ने सीमा संबंधी सारे विवाद निपटा क्यों नहीं लिए.
मगर इसके पीछे भी भारत की मित्रता की भावना मानी जाती है कि उसने चीन के शांति और मित्रता के वायदे को मान लिया और निश्चिंत हो गया.
पंडित नेहरू ने अप्रैल 1954 में संसद में इस संधि का बचाव करते हुए कहा था, "ये वहाँ के मौजूदा हालात को सिर्फ़ एक पहचान देने जैसा है. ऐतिहासिक और व्यावहारिक कारणों से ये क़दम उठाया गया."
उन्होंने क्षेत्र में शांति को सबसे ज़्यादा अहमियत दी और चीन में एक विश्वसनीय दोस्त देखा.
इसके बाद भी जब भारत और चीन संबंधों की बात होती है तब इस सिद्धांत का उल्लेख ज़रूर होता है.
इस संधि को भले ही 1962 में ज़बरदस्त चोट पहुँची हो मगर अंतरराष्ट्रीय संबंधों में इसका अमर दिशानिर्देशक सिद्धांत हमेशा जगमगाता रहेगा.
चीन के क्षेत्र तिब्बत और भारत के बीच व्यापार और आपसी संबंधों को लेकर ये समझौता हुआ था.
इस समझौते की प्रस्तावना में पाँच सिद्धांत थे जो अगले पाँच साल तक भारत की विदेश नीति की रीढ़ रहे. इसके बाद ही हिंदी-चीनी भाई-भाई के नारे लगे और भारत ने गुट निरपेक्ष रवैया अपनाया.
फिर 1962 में चीन के साथ हुए युद्ध में इस संधि की मूल भावना को काफ़ी चोट पहुँची.
पंचशील शब्द ऐतिहासिक बौद्ध अभिलेखों से लिया गया है जो कि बौद्ध भिक्षुओं का व्यवहार निर्धारित करने वाले पाँच निषेध होते हैं.
तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने वहीं से ये शब्द लिया था.
इस समझौते के बारे में 31 दिसंबर 1953 और 29 अप्रैल 1954 को बैठकें हुई थीं जिसके बाद अंततः बेइजिंग में इस पर हस्ताक्षर हुए.
समझौता मुख्य तौर पर भारत और तिब्बत के व्यापारिक संबंधों पर केंद्रित है मगर इसे याद किया जाता है इसकी प्रस्तावना की वजह से जिसमें पाँच सिद्धांत हैं-
पंचशील
एक दूसरे की अखंडता और संप्रभुता का सम्मानपरस्पर अनाक्रमणएक दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करनासमान और परस्पर लाभकारी संबंधशांतिपूर्ण सह-अस्तित्व
इस समझौते के तहत भारत ने तिब्बत को चीन का एक क्षेत्र स्वीकार कर लिया. इस तरह उस समय इस संधि ने भारत और चीन के संबंधों के तनाव को काफ़ी हद तक दूर कर दिया था.
भारत को 1904 की ऐंग्लो तिबतन संधि के तहत तिब्बत के संबंध में जो अधिकार मिले थे भारत ने वे सारे इस संधि के बाद छोड़ दिए, हालाँकि बाद में ये भी सवाल उठे कि इसके एवज में भारत ने सीमा संबंधी सारे विवाद निपटा क्यों नहीं लिए.
मगर इसके पीछे भी भारत की मित्रता की भावना मानी जाती है कि उसने चीन के शांति और मित्रता के वायदे को मान लिया और निश्चिंत हो गया.
पंडित नेहरू ने अप्रैल 1954 में संसद में इस संधि का बचाव करते हुए कहा था, "ये वहाँ के मौजूदा हालात को सिर्फ़ एक पहचान देने जैसा है. ऐतिहासिक और व्यावहारिक कारणों से ये क़दम उठाया गया."
उन्होंने क्षेत्र में शांति को सबसे ज़्यादा अहमियत दी और चीन में एक विश्वसनीय दोस्त देखा.
इसके बाद भी जब भारत और चीन संबंधों की बात होती है तब इस सिद्धांत का उल्लेख ज़रूर होता है.
इस संधि को भले ही 1962 में ज़बरदस्त चोट पहुँची हो मगर अंतरराष्ट्रीय संबंधों में इसका अमर दिशानिर्देशक सिद्धांत हमेशा जगमगाता रहेगा.
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★भारत आणि चीनमध्ये पंचशील करार 1954 मध्ये झाला होता.
★देशाचे तत्कालीन पंतप्रधान पंडित जवाहरलाल नेहरू यांनी चीनसोबत तो करार केला होता.
■भारत-चीन संबंधांचा पंचशील करार■
-भारत आणि चीनमध्ये 29 एप्रिल 1954 रोजी हा करार झाला होता.त्यावेळी जवाहरलाल नेहरू भारताचे पंतप्रधान होते.चीनच्या तिबेट आणि भारतात व्यापार तसेच परस्पर संबंधांसाठी हा करार झाला होता.
-या कराराच्या प्रस्तावणेत 5 सिद्धांत मांडण्यात आले होते.जे
पुढील 5 वर्षे भारताच्या परराष्ट्र धोरणाच्या पाठीचा कणा ठरले.
यानंतरच हिंदी-चीनी भाई-भाई हे ब्रिदवाक्य प्रचलित झाले आणि भारताने गटनिरपेक्षा भूमिका घेतली.
-1962 च्या भारत-चीन युद्धामुळे या कराराची भावना दुखावली गेली.
-पंचशील हा शब्द ऐतिहासिक बौद्ध अभिलेखांमधून घेण्यात आला आहे.हे पंचशील सिद्धांत बौद्ध भिख्खूंच्या वर्तनाशी संबंधित आहेत.
★देशाचे तत्कालीन पंतप्रधान पंडित जवाहरलाल नेहरू यांनी चीनसोबत तो करार केला होता.
■भारत-चीन संबंधांचा पंचशील करार■
-भारत आणि चीनमध्ये 29 एप्रिल 1954 रोजी हा करार झाला होता.त्यावेळी जवाहरलाल नेहरू भारताचे पंतप्रधान होते.चीनच्या तिबेट आणि भारतात व्यापार तसेच परस्पर संबंधांसाठी हा करार झाला होता.
-या कराराच्या प्रस्तावणेत 5 सिद्धांत मांडण्यात आले होते.जे
पुढील 5 वर्षे भारताच्या परराष्ट्र धोरणाच्या पाठीचा कणा ठरले.
यानंतरच हिंदी-चीनी भाई-भाई हे ब्रिदवाक्य प्रचलित झाले आणि भारताने गटनिरपेक्षा भूमिका घेतली.
-1962 च्या भारत-चीन युद्धामुळे या कराराची भावना दुखावली गेली.
-पंचशील हा शब्द ऐतिहासिक बौद्ध अभिलेखांमधून घेण्यात आला आहे.हे पंचशील सिद्धांत बौद्ध भिख्खूंच्या वर्तनाशी संबंधित आहेत.
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पंचशील करार हा भारताने चीनसोबत 29 एप्रिल 1954 रोजी केला.
या करारावर भारताचे तत्कालीन पंतप्रधान जवाहरलाल नेहरू आणि चीनचे पंतप्रधान चाऊ एन लाई यांनी स्वाक्षरी केली होती.
हा करार दोन्ही देशांमधील संबंध सुधारण्यासाठी आणि शांततापूर्ण सहकार्याला प्रोत्साहन देण्यासाठी करण्यात आला होता.
पंचशील कराराची तत्वे:
- परस्परांच्या प्रादेशिक अखंडतेचा आणि सार्वभौमत्वाचा आदर करणे.
- परस्परांवर आक्रमण न करणे.
- परस्परांच्या अंतर्गत बाबींमध्ये हस्तक्षेप न करणे.
- समानता आणि परस्परांना लाभ.
- शांततापूर्ण सहअस्तित्व.
अधिक माहितीसाठी: आपण विकिपीडिया (https://mr.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%82%E0%A4%9A%E0%A4%B6%E0%A5%80%E0%A4%B2) येथे भेट देऊ शकता.