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३५३ कलम काय आहे?
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कलम 353
आपल्या कर्तव्यांचे निर्वहन करण्यासाठी लोकांना भरती करण्यासाठी हल्ला किंवा गुन्हेगारी बंदीचा वापर तपशीलवार विवरण: जो कोणी सार्वजनिक सेवक असतो त्यावेळी तो सरकारी सेवक असतो स्वतःचे कर्तव्य बजावणे, किंवा एखाद्या व्यक्तीस सार्वजनिक सेवक म्हणून किंवा सार्वजनिक सेवक म्हणून आपल्या कर्तव्यातून सुटून सोडणे, त्याच्या कर्तव्याचा कायदेशीर विसर्जन केल्यावर, त्यावर फौजदारी दलाचा वापर केल्याने, एखाद्या गोष्टीच्या कारागृहामुळे किंवा कोणत्याही प्रकारचे परिणाम म्हणून त्याचा वापर केला जाऊ शकतो, ज्याची मुदत दोन वर्षांपर्यंत असू शकते, किंवा दंड करून, किंवा दोन्ही, शिक्षा जाईल
आपल्या कर्तव्यांचे निर्वहन करण्यासाठी लोकांना भरती करण्यासाठी हल्ला किंवा गुन्हेगारी बंदीचा वापर तपशीलवार विवरण: जो कोणी सार्वजनिक सेवक असतो त्यावेळी तो सरकारी सेवक असतो स्वतःचे कर्तव्य बजावणे, किंवा एखाद्या व्यक्तीस सार्वजनिक सेवक म्हणून किंवा सार्वजनिक सेवक म्हणून आपल्या कर्तव्यातून सुटून सोडणे, त्याच्या कर्तव्याचा कायदेशीर विसर्जन केल्यावर, त्यावर फौजदारी दलाचा वापर केल्याने, एखाद्या गोष्टीच्या कारागृहामुळे किंवा कोणत्याही प्रकारचे परिणाम म्हणून त्याचा वापर केला जाऊ शकतो, ज्याची मुदत दोन वर्षांपर्यंत असू शकते, किंवा दंड करून, किंवा दोन्ही, शिक्षा जाईल
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भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 353 उन लोगों पर लगाई जा सकती है जो किसी लोक-सेवक या सरकारी कर्मचारी को उसके कर्तव्य पालन करने से बाधित करने के आशय से उन पर हमला या किसी प्रकार का बल प्रयोग करते है। ऐसे मामलों में दोषी को दो साल तक की सजा या जुर्माना या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
आईपीसी 353 से संबंधित दिल्ली हाई कोर्ट का फैसला :
4 फरवरी 2002, दोपहर लगभग 12.05 बजे दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) कमिश्नर अपने पीएसओ कांस्टेबल जय किशन के साथ आयुक्त कार्यालय, टाउन हॉल के वरांडा से गुजर रहे थे तब वीरेन्द्र शर्मा ने उन्हें रास्ते में अचानक मुलाकात के लिए उन्हें रोक दिया और काले रंग की सिहाई उनके चेहरे पर छिड़क दी, साथ ही साथ उनके खिलाफ अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल करते हुए वीरेन्द्र शर्मा ने चिल्लाया कि उनके कार्यकाल के दौरान एमसीडी में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हो रहे थे और इसलिए उनका चेहरा काला होना चाहिए। वीरेन्द्र शर्मा को पीएसओ द्वारा बलपूर्वक रोका गया और पीएसओ का बयान पुलिस द्वारा दर्ज किया गया, और उनके बयान के आधार पर वीरेन्द्र शर्मा को गिरफ्तार कर लिया गया, इस मामले की सुनवाई हुई और वीरेन्द्र शर्मा दोषी ठहराया गया और सजा सुनाई गई। वीरेन्द्र शर्मा ने इस मामले के याचिका माननिय उच्च न्यायालय में लगाई जहां उनकी याचिका खरिज कर दी गई।
आईपीसी 353 से संबंधित दिल्ली हाई कोर्ट का फैसला :
4 फरवरी 2002, दोपहर लगभग 12.05 बजे दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) कमिश्नर अपने पीएसओ कांस्टेबल जय किशन के साथ आयुक्त कार्यालय, टाउन हॉल के वरांडा से गुजर रहे थे तब वीरेन्द्र शर्मा ने उन्हें रास्ते में अचानक मुलाकात के लिए उन्हें रोक दिया और काले रंग की सिहाई उनके चेहरे पर छिड़क दी, साथ ही साथ उनके खिलाफ अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल करते हुए वीरेन्द्र शर्मा ने चिल्लाया कि उनके कार्यकाल के दौरान एमसीडी में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हो रहे थे और इसलिए उनका चेहरा काला होना चाहिए। वीरेन्द्र शर्मा को पीएसओ द्वारा बलपूर्वक रोका गया और पीएसओ का बयान पुलिस द्वारा दर्ज किया गया, और उनके बयान के आधार पर वीरेन्द्र शर्मा को गिरफ्तार कर लिया गया, इस मामले की सुनवाई हुई और वीरेन्द्र शर्मा दोषी ठहराया गया और सजा सुनाई गई। वीरेन्द्र शर्मा ने इस मामले के याचिका माननिय उच्च न्यायालय में लगाई जहां उनकी याचिका खरिज कर दी गई।
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भारतीय दंड संहिता (IPC) कलम ३५३ हे सरकारी कर्मचाऱ्याला त्याच्या कर्तव्यात अडथळा आणणे किंवा हल्ला करणे या संबंधित आहे.
कलम ३५३ नुसार:
- जो कोणी सरकारी कर्मचाऱ्याला त्याची कायदेशीर कर्तव्ये बजावण्यापासून रोखेल किंवा त्याला कर्तव्य बजावण्यास विरोध करेल.
- असा विरोध करत असताना सरकारी कर्मचाऱ्यावर हल्ला करेल किंवा त्याला मारहाण करेल.
- किंवा हल्ला करण्याचा प्रयत्न करेल,
तर त्याला दोन वर्षांपर्यंत कारावास, किंवा दंड, किंवा दोन्ही शिक्षा होऊ शकतात.
हे कलम सरकारी कर्मचाऱ्यांचे संरक्षण करते जेणेकरून ते त्यांचे काम निर्भयपणे करू शकतील.
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