मिरगी
आरोग्य
माझं वय २६ वर्ष आहे. मला ४ वर्षांपासून अचानक फिट्सचा त्रास चालू झाला आहे. ह्या ४ वर्षात मला ७/८ वेळा फीट आली. औषधं चालू आहेत. तरी फिट लवकरात लवकर बंद होण्यासाठी वेगळा काही उपाय असेल तर सांगा?
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माझं वय २६ वर्ष आहे. मला ४ वर्षांपासून अचानक फिट्सचा त्रास चालू झाला आहे. ह्या ४ वर्षात मला ७/८ वेळा फीट आली. औषधं चालू आहेत. तरी फिट लवकरात लवकर बंद होण्यासाठी वेगळा काही उपाय असेल तर सांगा?
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मिर्गी तंत्रिकातंत्रीय विकार (neurological disorder) के कारण होता है। ये बीमारी मस्तिष्क के विकार के कारण होती है। यानि मिर्गी का दौरा पड़ने पर शरीर अकड़ जाता है जिसको अंग्रेजी में सीज़र डिसॉर्डर ( seizure disorder) भी कहते हैं।
वैसे तो इस बीमारी का पता 3000 साल पहले लग चुका था लेकिन इस बीमारी को लेकर लोगों के मन में जो गलत धारणाएं हैं उसके कारण इसका सही तरह से इलाज की बात करने की बात लोग सोचते बहुत कम हैं। ग्रामीण इलाकों में लोग इस बीमारी को भूत-प्रेत का साया समझते हैं और उसका सही तरह से इलाज करवाने के जगह पर झाड़-फूंक करवाने ले जाते हैं। यहां कि तक लोग मिर्गी के मरीज़ को पागल ही समझ लेते हैं। जिन महिलाओं को मिर्गी का रोग होता है उनकी शादी होनी मुश्किल होती है क्योंकि लोग मानते हैं कि मिर्गी के मरीज़ को बच्चा नहीं हो सकता है या बच्चे भी माँ के कारण इस बीमारी का शिकार हो जाते हैं।
मिर्गी का मरीज़ पागल नहीं होता है वह आम लोगों के तरह ही होता है। उसकी शारीरिक प्रक्रिया भी सामान्य होती है। मिर्गी का मरीज़ शादी करने के योग्य होता/होती है और वे बच्चे को जन्म देने की भी पूर्ण क्षमता रखते हैं सिर्फ उनको डॉक्टर के तत्वाधान में रहना पड़ता है।
कारण
मस्तिष्क का काम न्यूरॉन्स के सही तरह से सिग्नल देने पर निर्भर करता है। लेकिन जब इस काम में बाधा उत्पन्न होने लगता है तब मस्तिष्क के काम में प्रॉबल्म आना शुरू हो जाता है। इसके कारण मिर्गी के मरीज़ को जब दौरा पड़ता है तब उसका शरीर अकड़ जाता है, बेहोश हो जाते हैं, कुछ वक्त के लिए शरीर के विशेष अंग निष्क्रिय हो जाता है आदि। वैसे तो इसके रोग के होने के सही कारण के बारे में बताना कुछ मुश्किल है। कुछ कारणों के मस्तिष्क पर पड़ सकता है असर, जैसे-
• सिर पर किसी प्रकार का चोट लगने के कारण।
• जन्म के समय मस्तिष्क में पूर्ण रूप से ऑक्सिजन का आवागमन न होने पर।
• ब्रेन ट्यूमर।
• दिमागी बुखार (meningitis) और इन्सेफेलाइटिस (encephalitis) के इंफेक्शन से मस्तिष्क पर पड़ता है प्रभाव।
• ब्रेन स्ट्रोक होने पर ब्लड वेसल्स को क्षति पहुँचती है।
• न्यूरोलॉजिकल डिज़ीज जैसे अल्जाइमर रोग।
• जेनेटिक कंडिशन।
• कार्बन मोनोऑक्साइड के विषाक्तता के कारण भी मिर्गी का रोग होता है।
• ड्रग एडिक्शन और एन्टीडिप्रेसेन्ट के ज्यादा इस्तेमाल होने पर भी मस्तिष्क पर प्रभाव पड़ सकता है।
डॉ. अर्जुन श्रीवास्तव, न्यूरोसर्जन और स्पाइन ट्रस्ट इंडिया के ट्रस्टी के अनुसार बच्चों में लगभग तीस प्रतिशत मामलों में पांच वर्षों से पहले इस बीमारी के होने की संभावना नजर आती है।
लक्षण
वैसे तो मिर्गी का दौरा पड़ने पर बहुत तरह के शारीरिक लक्षण नजर आते हैं। मिर्गी का दौरा पड़ने पर मरीज़ के अलग-अलग लक्षण हो सकते हैं। लेकिन कुछ आम लक्षण मिर्गी के दौरा पड़ने पर नजर आते हैं, वे हैं-
• अचानक हाथ,पैर और चेहरे के मांसपेशियों में खिंचाव उत्पन्न होने लगता है।
• सर और आंख की पुतलियों में लगातार मूवमेंट होने लगता है।
• मरीज़ या तो पूर्ण रूप से बेहोश हो जाता है या आंशिक रूप से मुर्छित होता है।
• पेट में गड़बड़ी।
• जीभ काटने और असंयम की प्रवृत्ति।
• मिर्गी के दौरे के बाद मरीज़ उलझन में होता है, नींद से बोझिल और थका हुआ महसूस करता है।
डॉ. श्रीवास्तव के अनुसार मिर्गी रोग का निर्धारण मरीज़ के मेडिकल हिस्ट्री को देखकर ही पता लगाया जा सकता है। मरीज़ के घर के लोग या दोस्त परिजन मरीज़ के दौरे के समय ही हालत और शारीरिक प्रक्रिया में बदलाव के बारे में सही तरह से बयान कर सकते हैं। डॉक्टर मरीज़ के पल्स रेट और ब्लड प्रेशर को चेक करने के साथ-साथ न्यूरोलॉजिकल साइन को भी एक्जामीन करते हैं। इसके अलावा डॉक्टर इस रोग का पता ई.ई.जी (electroencephalogram (EEG), सी.टी.स्कैन या एम.आर.आई (CT scan or MRI) और पेट (positron emission tomography (PET) scan) के द्वारा लगाते हैं।
उपचार
मिर्गी के रोग का एक ही उपचार हो सकता है, वह है दौरे के समय सीज़र को कंट्रोल में करना।
खानपान- रिसर्च के अनुसार मिर्गी के रोगी को ज्यादा फैट वाला और कम कार्बोहाइड्रेड वाला डायट लेना चाहिए। इससे सीज़र पड़ने के अंतराल में कमी आती है।
रोकथाम
रोकथाम और बेहतर इलाज के लिये मुझसे कॉंटेक्ट करे -
वैभव सुरेश राऊत
8378863861
वैसे तो इस बीमारी का पता 3000 साल पहले लग चुका था लेकिन इस बीमारी को लेकर लोगों के मन में जो गलत धारणाएं हैं उसके कारण इसका सही तरह से इलाज की बात करने की बात लोग सोचते बहुत कम हैं। ग्रामीण इलाकों में लोग इस बीमारी को भूत-प्रेत का साया समझते हैं और उसका सही तरह से इलाज करवाने के जगह पर झाड़-फूंक करवाने ले जाते हैं। यहां कि तक लोग मिर्गी के मरीज़ को पागल ही समझ लेते हैं। जिन महिलाओं को मिर्गी का रोग होता है उनकी शादी होनी मुश्किल होती है क्योंकि लोग मानते हैं कि मिर्गी के मरीज़ को बच्चा नहीं हो सकता है या बच्चे भी माँ के कारण इस बीमारी का शिकार हो जाते हैं।
मिर्गी का मरीज़ पागल नहीं होता है वह आम लोगों के तरह ही होता है। उसकी शारीरिक प्रक्रिया भी सामान्य होती है। मिर्गी का मरीज़ शादी करने के योग्य होता/होती है और वे बच्चे को जन्म देने की भी पूर्ण क्षमता रखते हैं सिर्फ उनको डॉक्टर के तत्वाधान में रहना पड़ता है।
कारण
मस्तिष्क का काम न्यूरॉन्स के सही तरह से सिग्नल देने पर निर्भर करता है। लेकिन जब इस काम में बाधा उत्पन्न होने लगता है तब मस्तिष्क के काम में प्रॉबल्म आना शुरू हो जाता है। इसके कारण मिर्गी के मरीज़ को जब दौरा पड़ता है तब उसका शरीर अकड़ जाता है, बेहोश हो जाते हैं, कुछ वक्त के लिए शरीर के विशेष अंग निष्क्रिय हो जाता है आदि। वैसे तो इसके रोग के होने के सही कारण के बारे में बताना कुछ मुश्किल है। कुछ कारणों के मस्तिष्क पर पड़ सकता है असर, जैसे-
• सिर पर किसी प्रकार का चोट लगने के कारण।
• जन्म के समय मस्तिष्क में पूर्ण रूप से ऑक्सिजन का आवागमन न होने पर।
• ब्रेन ट्यूमर।
• दिमागी बुखार (meningitis) और इन्सेफेलाइटिस (encephalitis) के इंफेक्शन से मस्तिष्क पर पड़ता है प्रभाव।
• ब्रेन स्ट्रोक होने पर ब्लड वेसल्स को क्षति पहुँचती है।
• न्यूरोलॉजिकल डिज़ीज जैसे अल्जाइमर रोग।
• जेनेटिक कंडिशन।
• कार्बन मोनोऑक्साइड के विषाक्तता के कारण भी मिर्गी का रोग होता है।
• ड्रग एडिक्शन और एन्टीडिप्रेसेन्ट के ज्यादा इस्तेमाल होने पर भी मस्तिष्क पर प्रभाव पड़ सकता है।
डॉ. अर्जुन श्रीवास्तव, न्यूरोसर्जन और स्पाइन ट्रस्ट इंडिया के ट्रस्टी के अनुसार बच्चों में लगभग तीस प्रतिशत मामलों में पांच वर्षों से पहले इस बीमारी के होने की संभावना नजर आती है।
लक्षण
वैसे तो मिर्गी का दौरा पड़ने पर बहुत तरह के शारीरिक लक्षण नजर आते हैं। मिर्गी का दौरा पड़ने पर मरीज़ के अलग-अलग लक्षण हो सकते हैं। लेकिन कुछ आम लक्षण मिर्गी के दौरा पड़ने पर नजर आते हैं, वे हैं-
• अचानक हाथ,पैर और चेहरे के मांसपेशियों में खिंचाव उत्पन्न होने लगता है।
• सर और आंख की पुतलियों में लगातार मूवमेंट होने लगता है।
• मरीज़ या तो पूर्ण रूप से बेहोश हो जाता है या आंशिक रूप से मुर्छित होता है।
• पेट में गड़बड़ी।
• जीभ काटने और असंयम की प्रवृत्ति।
• मिर्गी के दौरे के बाद मरीज़ उलझन में होता है, नींद से बोझिल और थका हुआ महसूस करता है।
डॉ. श्रीवास्तव के अनुसार मिर्गी रोग का निर्धारण मरीज़ के मेडिकल हिस्ट्री को देखकर ही पता लगाया जा सकता है। मरीज़ के घर के लोग या दोस्त परिजन मरीज़ के दौरे के समय ही हालत और शारीरिक प्रक्रिया में बदलाव के बारे में सही तरह से बयान कर सकते हैं। डॉक्टर मरीज़ के पल्स रेट और ब्लड प्रेशर को चेक करने के साथ-साथ न्यूरोलॉजिकल साइन को भी एक्जामीन करते हैं। इसके अलावा डॉक्टर इस रोग का पता ई.ई.जी (electroencephalogram (EEG), सी.टी.स्कैन या एम.आर.आई (CT scan or MRI) और पेट (positron emission tomography (PET) scan) के द्वारा लगाते हैं।
उपचार
मिर्गी के रोग का एक ही उपचार हो सकता है, वह है दौरे के समय सीज़र को कंट्रोल में करना।
खानपान- रिसर्च के अनुसार मिर्गी के रोगी को ज्यादा फैट वाला और कम कार्बोहाइड्रेड वाला डायट लेना चाहिए। इससे सीज़र पड़ने के अंतराल में कमी आती है।
रोकथाम
रोकथाम और बेहतर इलाज के लिये मुझसे कॉंटेक्ट करे -
वैभव सुरेश राऊत
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फिट्स (Seizures) लवकर थांबवण्यासाठी काही उपाय खालीलप्रमाणे आहेत:
1. नियमित औषधोपचार:
- डॉक्टरांनी दिलेली औषधे नियमितपणे आणि वेळेवर घ्या. औषधांचा डोस चुकवू नका.
- फिट्सची वारंवारता कमी करण्यासाठी डॉक्टरांच्या सल्ल्यानुसार औषधोपचार करणे आवश्यक आहे.
2. जीवनशैलीत बदल:
- पुरेशी झोप घ्या (दररोज रात्री ७-८ तास).
- तणाव कमी करण्यासाठी योग, ध्यान, किंवा श्वासोच्छवासाचे व्यायाम करा.
- नियमित व्यायाम करा.
- आहार संतुलित ठेवा.
- धूम्रपान आणि मद्यपान टाळा.
3. ट्रिगर ओळखा आणि टाळा:
- काही विशिष्ट गोष्टींमुळे फिट्स येऊ शकतात, जसे की झोप न लागणे, जास्त ताण, विशिष्ट प्रकारचे आवाज किंवा प्रकाश. ते ओळखा आणि टाळा.
4. डॉक्टरांचा सल्ला:
- नियमितपणे डॉक्टरांकडे तपासणी करा आणि त्यांना आपल्या लक्षणांबद्दल माहिती द्या.
- औषधांमध्ये बदल किंवा डोस बदलण्याची आवश्यकता असल्यास डॉक्टरांचा सल्ला घ्या.
5. इतर उपचार पद्धती: काही प्रकरणांमध्ये, डॉक्टर खालील उपचार पद्धतींचा विचार करू शकतात:
- केටोजेनिक आहार (Ketogenic diet): हा आहार लहान मुलांमधील काही प्रकारच्या फिट्ससाठी उपयुक्त ठरू शकतो.
- व्हेगस नर्व्ह स्टिम्युलेशन (Vagus nerve stimulation): या उपचार पद्धतीत, एका उपकरणाद्वारे मेंदूला उत्तेजित केले जाते.
- सर्जरी (Surgery): काही विशिष्ट प्रकरणांमध्ये, मेंदूतील ज्या भागामुळे फिट्स येतात, तो भाग शस्त्रक्रियेद्वारे काढला जातो.
टीप: कोणताही नवीन उपचार सुरू करण्यापूर्वी डॉक्टरांचा सल्ला घेणे आवश्यक आहे.