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ओरिजिनल कस्तुरी कोठे मिळेल?
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परिचय :
कस्तूरी एक सुगंधित पदार्थ है और इसकी सुगंध काफी दूर तक फैलती है। यह हिरन की नाभि में मौजूद होती है। पहाड़ी प्रदेश में पाए जाने वाले हिरनों में ही कस्तूरी होती है। हिरन की नाभि की बनावट आडू जैसी गोलाकार होती है और कुछ लोग कस्तूरी प्राप्त करने के लिए हिरन को मारकर उसके नाभि से कस्तूरी निकाल लेती है। हिरन की नाभि में30 से 40 ग्राम की मात्रा में कस्तूरी रहती है। कस्तूरी के ऊपर बाल होते हैं और अन्दर मक्का चूर्ण, कलौंजी और इलायचीके दाने की तरह दाने निकलते हैं।
कस्तूरी तीन प्रकार की होती है :
1. कामरूप में उत्पन्न कस्तूरी काले रंग की होती है और उत्तम भी होती है।
2. नेपाल में पैदा होने वाली कस्तूरी के रंग के बार में कस्तूरी रंग में भूरी होती है। इसका रंग नीला होता है।
3. कश्मीर में पैदा होने वाली कस्तूरी कपिल रंग की होती है और यह कस्तूरी सामान्य गुणों वाला होती है।
असली कस्तूरी की पहचान करना :
छोटे, अधिक आयु वाले व कमजोर हिरन की नाभि की कस्तूरी धीमी गंध वाली होती है और कामातुर और व्यस्क हिरन की नाभी की कस्तूरी साफ रंग वाली व बहुत ही कम खुशबू वाली होती है।
यदि कस्तूरी छूने पर चिकनी महसूस हो, जलाने से धुएं की तरह गंध आए, कपडे़ पर इसका पीला दाग लगे, आग में जल्दी जल जाएं, मलने पर रूखा महसूस हो तो यह बनावटी और नकली कस्तूरी होता है।
यदि कस्तूरी से केवड़े के फूल की तरह हल्की और सुगंध आती हो। इसका रंग सावला, नीला और भूरा हो। इसका स्वाद कडुवा हो, मलने पर चिकनाहट महसूस हो, आग में जलाने से काफी देर तक जलता हो तो इस तरह की कस्तूरी हिरन की नाभि से उत्पन्न हुई कस्तूरी होती है।
यदि कस्तूरी को अदरक के रस में मलाकर सिर पर लगा दिया जाए तो तुरन्त ही नाक से खून टपकने लगता है और असली मलयागिर चन्दन सिर पर लगा दिया जाए तो खून का बहना बंद हो जाता है। यह असली कस्तूरी और चन्दनकी पहचान है।
विभिन्न भाषाओं में नाम :
संस्कृत
मृगनाभि, मृगमद।
हिन्दी
कस्तूरी।
अंग्रेजी
मुश्क।
लैटिन
मोसकस।
मराठी
कस्तूरी।
बंगाली
मृगनाभि।
फारसी
मुष्क।
अरबी
मिस्क।
रंग : कस्तूरी हल्की लाल, काली, नीली एवं भूरी होती है।
स्वाद : यह कडुवी होती है।
स्वरूप : कस्तूरी काले हिरन की नाभि से प्राप्त की जाती है। यह बहुत सुगंधित होती है और इसकी सुगंध काफी दूर तक फैलती है। यह हृदय के लिए बहुत लाभकारी होता है।
प्रकृति : यह गर्म होती है।
हानिकारक : कस्तूरी पित्त प्रकृति वालों के लिए हानिकारक है और इससे सिर दर्द पैदा होता है।
दोषों को दूर करने वाला : वंशलोचन और गुलाब का रस कस्तूरी में व्याप्त दोषों को दूर करता है।
तुलना : वंशलोचन, मक्खी की पंख, घोड़ी की लीद से कस्तूरी की तुलना की जा सकती है।
मात्रा : आधा ग्राम से 1 ग्राम तक।
गुण : कस्तूरी मन को शांत व प्रसन्न करती है। आंखों के लिए फायदेमंद होती है। यह बदबू को दूर करती है। यह दिल के लिए अच्छी होती है और दिमाग को तेज करती है। शरीर में गर्मी पैदा करती हैं, स्मरण शक्ति को बढ़ाती है, धातु को पुष्ट करती है, प्रमेह को खत्म करती है एवं लकवे को समाप्त करती है।
विभिन्न भाषाओं में नाम :
1. दांतों का दर्द: दांतों में दर्द होने पर कूठ एवं कस्तूरी को मिलाकर दांतों पर मलें। इससे दर्द में जल्द आराम मिलता है।
2. काली खांसी: सरसों के दाने के बराबर कस्तूरी लेकर मक्खन के साथ मिलाकर खाने से कुकुर खांसी दूर होती है।
3. बवासीर (अर्श): कस्तूरी 1 ग्राम, अफसन्तीन 40 ग्राम और भुनी हुई हींग 20 ग्राम को पीस लें और पानी के साथ मिलाकर 40 गोलियां बना लें। इसकी 1-1 गोली प्रतिदिन सुबह-शाम खाने से बवासीर ठीक होती है।
4. गर्भाशय का रोग: यदि गर्भाशय अपनी जगह से हट गया हो तो कस्तूरी और केसर को समान मात्रा में लेकर पानी के साथ पीसकर गोली बना लें। इस गोली को मासिकधर्म शुरू होने से पहले योनि में रखें। इस प्रकार तीन दिनों तक गोली रखने से गर्भाशय का रोग ठीक होता है।
कस्तूरी एक सुगंधित पदार्थ है और इसकी सुगंध काफी दूर तक फैलती है। यह हिरन की नाभि में मौजूद होती है। पहाड़ी प्रदेश में पाए जाने वाले हिरनों में ही कस्तूरी होती है। हिरन की नाभि की बनावट आडू जैसी गोलाकार होती है और कुछ लोग कस्तूरी प्राप्त करने के लिए हिरन को मारकर उसके नाभि से कस्तूरी निकाल लेती है। हिरन की नाभि में30 से 40 ग्राम की मात्रा में कस्तूरी रहती है। कस्तूरी के ऊपर बाल होते हैं और अन्दर मक्का चूर्ण, कलौंजी और इलायचीके दाने की तरह दाने निकलते हैं।
कस्तूरी तीन प्रकार की होती है :
1. कामरूप में उत्पन्न कस्तूरी काले रंग की होती है और उत्तम भी होती है।
2. नेपाल में पैदा होने वाली कस्तूरी के रंग के बार में कस्तूरी रंग में भूरी होती है। इसका रंग नीला होता है।
3. कश्मीर में पैदा होने वाली कस्तूरी कपिल रंग की होती है और यह कस्तूरी सामान्य गुणों वाला होती है।
असली कस्तूरी की पहचान करना :
छोटे, अधिक आयु वाले व कमजोर हिरन की नाभि की कस्तूरी धीमी गंध वाली होती है और कामातुर और व्यस्क हिरन की नाभी की कस्तूरी साफ रंग वाली व बहुत ही कम खुशबू वाली होती है।
यदि कस्तूरी छूने पर चिकनी महसूस हो, जलाने से धुएं की तरह गंध आए, कपडे़ पर इसका पीला दाग लगे, आग में जल्दी जल जाएं, मलने पर रूखा महसूस हो तो यह बनावटी और नकली कस्तूरी होता है।
यदि कस्तूरी से केवड़े के फूल की तरह हल्की और सुगंध आती हो। इसका रंग सावला, नीला और भूरा हो। इसका स्वाद कडुवा हो, मलने पर चिकनाहट महसूस हो, आग में जलाने से काफी देर तक जलता हो तो इस तरह की कस्तूरी हिरन की नाभि से उत्पन्न हुई कस्तूरी होती है।
यदि कस्तूरी को अदरक के रस में मलाकर सिर पर लगा दिया जाए तो तुरन्त ही नाक से खून टपकने लगता है और असली मलयागिर चन्दन सिर पर लगा दिया जाए तो खून का बहना बंद हो जाता है। यह असली कस्तूरी और चन्दनकी पहचान है।
विभिन्न भाषाओं में नाम :
संस्कृत
मृगनाभि, मृगमद।
हिन्दी
कस्तूरी।
अंग्रेजी
मुश्क।
लैटिन
मोसकस।
मराठी
कस्तूरी।
बंगाली
मृगनाभि।
फारसी
मुष्क।
अरबी
मिस्क।
रंग : कस्तूरी हल्की लाल, काली, नीली एवं भूरी होती है।
स्वाद : यह कडुवी होती है।
स्वरूप : कस्तूरी काले हिरन की नाभि से प्राप्त की जाती है। यह बहुत सुगंधित होती है और इसकी सुगंध काफी दूर तक फैलती है। यह हृदय के लिए बहुत लाभकारी होता है।
प्रकृति : यह गर्म होती है।
हानिकारक : कस्तूरी पित्त प्रकृति वालों के लिए हानिकारक है और इससे सिर दर्द पैदा होता है।
दोषों को दूर करने वाला : वंशलोचन और गुलाब का रस कस्तूरी में व्याप्त दोषों को दूर करता है।
तुलना : वंशलोचन, मक्खी की पंख, घोड़ी की लीद से कस्तूरी की तुलना की जा सकती है।
मात्रा : आधा ग्राम से 1 ग्राम तक।
गुण : कस्तूरी मन को शांत व प्रसन्न करती है। आंखों के लिए फायदेमंद होती है। यह बदबू को दूर करती है। यह दिल के लिए अच्छी होती है और दिमाग को तेज करती है। शरीर में गर्मी पैदा करती हैं, स्मरण शक्ति को बढ़ाती है, धातु को पुष्ट करती है, प्रमेह को खत्म करती है एवं लकवे को समाप्त करती है।
विभिन्न भाषाओं में नाम :
1. दांतों का दर्द: दांतों में दर्द होने पर कूठ एवं कस्तूरी को मिलाकर दांतों पर मलें। इससे दर्द में जल्द आराम मिलता है।
2. काली खांसी: सरसों के दाने के बराबर कस्तूरी लेकर मक्खन के साथ मिलाकर खाने से कुकुर खांसी दूर होती है।
3. बवासीर (अर्श): कस्तूरी 1 ग्राम, अफसन्तीन 40 ग्राम और भुनी हुई हींग 20 ग्राम को पीस लें और पानी के साथ मिलाकर 40 गोलियां बना लें। इसकी 1-1 गोली प्रतिदिन सुबह-शाम खाने से बवासीर ठीक होती है।
4. गर्भाशय का रोग: यदि गर्भाशय अपनी जगह से हट गया हो तो कस्तूरी और केसर को समान मात्रा में लेकर पानी के साथ पीसकर गोली बना लें। इस गोली को मासिकधर्म शुरू होने से पहले योनि में रखें। इस प्रकार तीन दिनों तक गोली रखने से गर्भाशय का रोग ठीक होता है।
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ओरिजिनल कस्तुरी मिळणे खूप कठीण आहे, कारण तिच्याशी संबंधित अनेक कायदेशीर आणि नैतिक मुद्दे आहेत. कस्तुरी ही केवळ नर कस्तुरी मृगाच्या ग्रंथीमधून मिळते आणि तिची शिकार करणे अनेक देशांमध्ये कायद्याने गुन्हा आहे. त्यामुळे बाजारात मिळणारी बहुतेक कस्तुरी ही बनावट किंवा सिंथेटिक (synthetic) असते.
तरीही, तुम्हाला ओरिजिनल कस्तुरी खरेदी करायची असल्यास, खालील गोष्टी लक्षात ठेवाव्यात:
- अधिकृत विक्रेते: सरकारमान्य वन्यजीव उत्पादने (wildlife products)विकणाऱ्या अधिकृत विक्रेत्यांकडूनच खरेदी करण्याचा प्रयत्न करा.
- परवाना: विक्रेत्याकडे कस्तुरी विकण्याचा परवाना असणे आवश्यक आहे.
- उत्पादनाची तपासणी: कस्तुरी खरेदी करण्यापूर्वी तिची गुणवत्ता आणि शुद्धता तपासा.
- किंमत: ओरिजिनल कस्तुरी खूप महाग असते, त्यामुळे कमी किमतीत मिळत असल्यास ती बनावट असण्याची शक्यता असते.
भारतात, काही सरकारी वन्यजीव अभयारण्ये (wildlife sanctuaries) आणि संशोधन संस्थांमध्ये (research institutes) कस्तुरी मिळू शकते, परंतु ती खरेदी करण्यासाठी विशेष परवानगी घ्यावी लागते.
इतर पर्याय:
ओरिजिनल कस्तुरीऐवजी, तुम्ही कस्तुरीसारखे सुगंध (fragrance)देणारे नैसर्गिक पर्याय वापरू शकता, जसे की कस्तुरी वनस्पती (Abelmoschus moschatus) किंवा सिंथेटिक कस्तुरी.