
सामान्य औषधे
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_*💊जेनेरिक औषधे म्हणजे काय?ही औषधे स्वस्त का असतात?*_
१०० रुपयांची मिळणारी औषधे २० रुपयांना, जेनेरिक मेडिसिन एवढी स्वस्त का?असा प्रश्न तुम्हाला कदाचित पडलेला असेलच मी *रसुल खडकाळे* आज आपणाला या बद्दल सविस्तर माहिती व उत्तर देत आहे.ही पूर्ण पोस्ट लक्षपूर्वक वाचा.
आपण आजारी पडल्या नंतर आपल्यावर होणाऱ्या उपचारामध्ये सर्वात जास्त खर्च हा औषधींवर होतो.परंतु बरेच लोक आपल्या गरिबीमुळे हे औषधी सुद्धा घेऊ शकत नाही. पण जेनेरिक मेडिसिन चा उपयोग करून महागडी औषधी अगदी माफक दारात आपल्याला मिळू शकते.
आपण जर आकडेवारी बघितली तर भूकंपामध्ये जितके प्राण जात नाहीत तितके प्राण किंवा जीव किंबहुना त्यापेक्षा जास्त औषधी न मिळाल्यामुळे दरवर्षी जातात. ही अतिशय दुर्देवी गोष्ट आहे. परंतु याच औषधी कमी व माफक दरात लोकांना पोहोचवण्याचं काम केल राजस्थान सरकारने जेनेरिक मेडिसिन च्या साहाय्याने आणि त्यामध्ये महत्वाची भूमिका पार पाडली ती चित्तोडगडचे माझी ज़िल्हाधिकारी डॉ.समित शर्मा यांनी.
*जेनरिक मेडिसिन म्हणजे काय?*
मूळ औषध किंवा त्याचे नाव वापरून विविध कंपन्यांद्वारा गोळ्या, सिरप्स बनवली जातात. काही औषध कंपन्या त्यांचं ब्रॅन्ड नेम वापरून औषधं विकतात. ब्रॅन्ड नेम नसलेली पण औषधांचा सारखाच फॉर्म्युला वापरून बनवलेल्या गोळ्या, सिरप म्हणजे जेनरिक औषधं.
जेनेरिक हा तसा मूळ इंग्रजी शब्द आहे. जेनेरिक हे औषधीच मूळ नाव किंवा औषधीच केमिकल नाव आहे. परंतु ही अतिशय दुर्भाग्यपूर्ण गोष्ट आहे कि या औषधींच नंतर ब्रॅण्डिंग केल्या जातं आणि त्याची किंमत मूळ किमतीपेक्षा पाचपट तर कधीकधी दहापट वाढविल्या जाते.जर आपण मधुमेह या आजारावरच्या औषधींच उदाहरण घेतलं तर बाजारामध्ये ब्रँडेड औषधींची किंमत ११७ रुपये प्रति गोळी अशी आहे पण तीच जर आपण जेनेरिक औषधी बरोबर जर त्याची तुलना केली तर १.९५ रुपयांमध्ये आपल्याला १० गोळ्या मिळतात.हा अतिशय मोठा फरक आपल्याला दिसून येतो.तर याची किंमत वाढते कशी हाच प्रश्न आपल्याला पडला असेल?तर जे यामध्ये औषधमाफिया आहेत त्यांच्यामुळे या किमती वाढतात.मूळ कंपनी अतिशय माफक दरात औषधे पुरवते परंतु नंतर औषधिमाफियांकढून त्याची किंमत वाढविल्या जाते व डॉक्टरना सुद्धा त्यामध्ये फोर्स केल्या जातो कि तुम्ही हीच औषधी आपल्या कडे येणाऱ्या रुग्णांना द्यावी.
४० करोड पेक्षा जास्त भारतीय आज दोन वेळचं आपल जेवण सुद्धा मिळवू शकत नाहीत.त्यांना औषधी मिळवणं तर फार लांबची गोष्ट झाली.जागतिक आरोग्य संघटना सांगते कि ६५ वर्ष्याच्या स्वातंत्र्यप्राप्तीनंतर सुद्धा ६५% भारतीय लोक आज सुद्धा मूलभूत औषधी सुद्धा मिळवू शकत नाही.ही अतिशय शरमेची बाब एक भारतीय म्हणून आपल्या सगळ्यासाठी आहे.दुसऱ्याच हाताला आपण दरवर्षी ४५,००० करोड ची जेनेरिक मेडिसिन दुसऱ्या देशामध्ये निर्यात करतो. इथे आपल्या देशातील लोकांना मूलभूत औषधी मिळत नाहीत आणि इतक्या मोठ्या प्रमाणात आपण दुसऱ्या देशामध्ये औषधी निर्यात करतो.
डॉ.समित शर्मा यांनी जेंव्हा सुरुवात केली तेंव्हा ते १०० वर्ष जुनी शोषन व्यवस्थेविरोधात त्यांना आपला लढा द्यायचा होता आणि फक्त तेच बदल करायचा होत जे आज पर्यंत चुकीचं होत आहे.डॉ.समित शर्मा यांनी आपली बुद्धी वापरून ही शोषण व्यवस्था बदलली आणि अतिशय माफक दरात जेनेरिक मेडिसिन गोरगरीब जनतेसाठी उपलब्ध करून दिली त्यासाठी डॉ.समित शर्मा तसेच राजस्थान सरकार यांना आपण सलाम केला पाहिजे आणि त्यांचा आदर्श घेऊन इतर राज्यातील सरकारने सुद्धा जेनेरिक मेडिसिन दुकाने सुरु करावीत जेणेकरून लोक माफक दरात औषधी घेऊन आपला उपचार करू शकतील.


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ज्यादातर बड़े शहरों में एक्सक्लुसिव जेनेरिक मेडिकल स्टोर होते हैं, लेकिन इनका व्यापक प्रचार नहीं होने से लोगों को इनका फायदा नहीं मिलता।
क्या आपको मालूम है कि आपकी किसी भी बीमारी के लिए डॉक्टर जो दवा
लिखता है, ठीक उसी दवा के सॉल्ट वाली जेनेरिक दवाएं उससे काफी कम कीमत पर आपको मिल सकती हैं। कीमत का यह अंतर पांच से दस गुना तक हो सकता है। बात सिर्फ आपके जागरूक होने की है। बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि देश में लगभग सभी नामी दवा कम्पनियां ब्रांडेड के साथ-साथ कम कीमत वाली जेनेरिक दवाएं भी बनाती हैं लेकिन ज्यादा लाभ के चक्कर में डॉक्टर और कंपनियां लोगों को इस बारे में कुछ बताते नहीं हैं और जानकारी के अभाव में गरीब भी केमिस्ट से महंगी दवाएं खरीदने को विवश हैं।
गौरतलब है कि किसी एक बीमारी के लिए तमाम शोधों के बाद एक रासायनिक यौगिक को विशेष दवा के रूप में देने की संस्तुति की जाती है। इस यौगिक को अलग-अलग कम्पनियां अलग-अलग नामों से बेचती हैं। जेनेरिक दवाइयों का नाम उसमें उपस्थित सक्रिय यौगिक के नाम के आधार पर एक विशेषज्ञ समिति निर्धारित करती है। किसी भी दवा का जेनेरिक नाम पूरे विश्व में एक ही होता है।
जेनेरिक दवा बिना किसी पेटेंट के बनाई और वितरित की जाती हैं यानी जेनेरिक दवा के फॉर्मुलेशन पर पेटेंट हो सकता है किन्तु उसकी सामग्री पर पेटेंट नहीं हो सकता। अंतरराष्ट्रीय मानकों से बनी जेनेरिक दवाइयों की गुणवत्ता ब्रांडेड दवाइयों से कम नहीं होती, जिनकी आपूर्ति दुनियाभर में भी की जाती है और यह भी उतना ही असर करती हैं जितना ब्रांडेड दवाएं करती हैं। उनकी डोज, साइड- इफेक्ट, सामग्री आदि सभी ब्रांडेड दवाओं के एकदम समान होती हैं। उदाहरण के लिए पुरुषों में इरेक्टाइल डिस्फंक्शन के इलाज के लिए सिल्डेन्फिल नाम की जेनेरिक दवा होती है जिसे फाइजर कम्पनी वियाग्रा नाम से बेचती है।
जेनेरिक दवाइयों को भी बाजार में लाने का लाइसेंस मिलने से पहले गुणवत्ता मानकों की सभी सख्त प्रक्रियाओं से गुजरना होता है। इन दवाओं के प्रचार-प्रसार पर कंपनियां कुछ खर्च नहीं करती। जेनेरिक दवाओं के मूल्य निर्धारण पर सरकारी अंकुश होता है, इसलिए वे सस्ती होती हैं, जबकि पेटेंट दवाओं की कीमत कंपनियां खुद तय करती हैं, इसलिए वे महंगी होती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि यदि डॉक्टर मरीज को जेनेरिक दवाइयों की सलाह देने लगें तो केवल धनी देशों में चिकित्सा व्यय पर 70 प्रतिशत तक कमी आ जायेगी तथा गरीब देशों के चिकित्सा व्यय में यह कमी और भी ज्यादा होगी।
कई बार तो ब्रांडेड और जेनेरिक दवाओं की कीमतों में नब्बे प्रतिशत तक का फर्क होता है। जैसे यदि ब्रांडेड दवाई की 14 गोलियों का एक पत्ता 786 रुपये का है, तो एक गोली की कीमत करीब 55 रुपये हुई। इसी सॉल्ट की जेनेरिक दवा की 10 गोलियों का पत्ता सिर्फ 59 रुपये में ही उपलब्ध है, यानी इसकी एक गोली करीब 6 रुपये में ही पड़ेगी। खास बात यह है कि किडनी, यूरिन, बर्न, दिल संबंधी रोग, न्यूरोलोजी, डायबिटीज जैसी बीमारियों में तो ब्रांडेड व जेनेरिक दवा की कीमत में बहुत ही ज्यादा अंतर देखने को मिलता है।
दवा कम्पनियां ब्रांडेड दवा से बड़ा मुनाफा कमाती हैं। दवाओं की कंपनियां अपने मेडिकल रिप्रजेंटेटिव्ज के जरिए डॉक्टरों को अपनी ब्रांडेड दवा लिखने के लिए खासे लाभ देती हैं। इसी आधार पर डॉक्टरों के नजदीकी मेडिकल स्टोर को दवा की आपूर्ति होती है। यही वजह है कि ब्रांडेड दवाओं का कारोबार दिन प्रति दिन बढ़ता जा रहा है। यही वजह है कि डॉक्टर जेनेरिक दवा लिखते ही नहीं हैं। जानकारी होने पर कोई व्यक्ति अगर केमिस्ट की दुकान से जेनेरिक दवा मांग भी ले तो दवा विक्रेता इनकी उपलब्धता से इंकार कर देते हैं।
देश के ज्यादातर बड़े शहरों में एक्सक्लुसिव जेनेरिक मेडिकल स्टोर होते हैं, लेकिन इनका व्यापक प्रचार नहीं होने से लोगों को इनका फायदा नहीं मिलता आजकल हर प्रकार की जानकारी इंटरनेट के जरिये आसानी से हासिल की जा सकती है। ब्रांडेड और जेनेरिक दवाओं की कीमत में अंतर का पता लगाने के लिए एक मोबाइल एप 'समाधान और हैल्थकार्ट भी बाजार में उपलब्ध है। दरकार है कि आज लोग जेनेरिक दवाओं के बारे में जानें और खासतौर पर गरीबों को इस ओर जागरूक करें ताकि वे दवा कंपनियों के मकडज़ाल में न फंसें।
सामान्य दवा या जेनेरिक दवा (generic drug) वह दवा है जो बिना किसी पेटेंट के बनायी और वितरित की जाती है। जेनेरिक दवा के फॉर्मुलेशन पर पेटेंट हो सकता है किन्तु उसके सक्रिय घटक (active ingradient) पर पेटेंट नहीं होता। जैनरिक दवाईयां गुणवत्ता में किसी भी प्रकार के ब्राण्डेड दवाईयों से कम नहीं होती....
क्या आपको मालूम है कि आपकी किसी भी बीमारी के लिए डॉक्टर जो दवा
लिखता है, ठीक उसी दवा के सॉल्ट वाली जेनेरिक दवाएं उससे काफी कम कीमत पर आपको मिल सकती हैं। कीमत का यह अंतर पांच से दस गुना तक हो सकता है। बात सिर्फ आपके जागरूक होने की है। बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि देश में लगभग सभी नामी दवा कम्पनियां ब्रांडेड के साथ-साथ कम कीमत वाली जेनेरिक दवाएं भी बनाती हैं लेकिन ज्यादा लाभ के चक्कर में डॉक्टर और कंपनियां लोगों को इस बारे में कुछ बताते नहीं हैं और जानकारी के अभाव में गरीब भी केमिस्ट से महंगी दवाएं खरीदने को विवश हैं।
गौरतलब है कि किसी एक बीमारी के लिए तमाम शोधों के बाद एक रासायनिक यौगिक को विशेष दवा के रूप में देने की संस्तुति की जाती है। इस यौगिक को अलग-अलग कम्पनियां अलग-अलग नामों से बेचती हैं। जेनेरिक दवाइयों का नाम उसमें उपस्थित सक्रिय यौगिक के नाम के आधार पर एक विशेषज्ञ समिति निर्धारित करती है। किसी भी दवा का जेनेरिक नाम पूरे विश्व में एक ही होता है।
जेनेरिक दवा बिना किसी पेटेंट के बनाई और वितरित की जाती हैं यानी जेनेरिक दवा के फॉर्मुलेशन पर पेटेंट हो सकता है किन्तु उसकी सामग्री पर पेटेंट नहीं हो सकता। अंतरराष्ट्रीय मानकों से बनी जेनेरिक दवाइयों की गुणवत्ता ब्रांडेड दवाइयों से कम नहीं होती, जिनकी आपूर्ति दुनियाभर में भी की जाती है और यह भी उतना ही असर करती हैं जितना ब्रांडेड दवाएं करती हैं। उनकी डोज, साइड- इफेक्ट, सामग्री आदि सभी ब्रांडेड दवाओं के एकदम समान होती हैं। उदाहरण के लिए पुरुषों में इरेक्टाइल डिस्फंक्शन के इलाज के लिए सिल्डेन्फिल नाम की जेनेरिक दवा होती है जिसे फाइजर कम्पनी वियाग्रा नाम से बेचती है।
जेनेरिक दवाइयों को भी बाजार में लाने का लाइसेंस मिलने से पहले गुणवत्ता मानकों की सभी सख्त प्रक्रियाओं से गुजरना होता है। इन दवाओं के प्रचार-प्रसार पर कंपनियां कुछ खर्च नहीं करती। जेनेरिक दवाओं के मूल्य निर्धारण पर सरकारी अंकुश होता है, इसलिए वे सस्ती होती हैं, जबकि पेटेंट दवाओं की कीमत कंपनियां खुद तय करती हैं, इसलिए वे महंगी होती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि यदि डॉक्टर मरीज को जेनेरिक दवाइयों की सलाह देने लगें तो केवल धनी देशों में चिकित्सा व्यय पर 70 प्रतिशत तक कमी आ जायेगी तथा गरीब देशों के चिकित्सा व्यय में यह कमी और भी ज्यादा होगी।
कई बार तो ब्रांडेड और जेनेरिक दवाओं की कीमतों में नब्बे प्रतिशत तक का फर्क होता है। जैसे यदि ब्रांडेड दवाई की 14 गोलियों का एक पत्ता 786 रुपये का है, तो एक गोली की कीमत करीब 55 रुपये हुई। इसी सॉल्ट की जेनेरिक दवा की 10 गोलियों का पत्ता सिर्फ 59 रुपये में ही उपलब्ध है, यानी इसकी एक गोली करीब 6 रुपये में ही पड़ेगी। खास बात यह है कि किडनी, यूरिन, बर्न, दिल संबंधी रोग, न्यूरोलोजी, डायबिटीज जैसी बीमारियों में तो ब्रांडेड व जेनेरिक दवा की कीमत में बहुत ही ज्यादा अंतर देखने को मिलता है।
दवा कम्पनियां ब्रांडेड दवा से बड़ा मुनाफा कमाती हैं। दवाओं की कंपनियां अपने मेडिकल रिप्रजेंटेटिव्ज के जरिए डॉक्टरों को अपनी ब्रांडेड दवा लिखने के लिए खासे लाभ देती हैं। इसी आधार पर डॉक्टरों के नजदीकी मेडिकल स्टोर को दवा की आपूर्ति होती है। यही वजह है कि ब्रांडेड दवाओं का कारोबार दिन प्रति दिन बढ़ता जा रहा है। यही वजह है कि डॉक्टर जेनेरिक दवा लिखते ही नहीं हैं। जानकारी होने पर कोई व्यक्ति अगर केमिस्ट की दुकान से जेनेरिक दवा मांग भी ले तो दवा विक्रेता इनकी उपलब्धता से इंकार कर देते हैं।
देश के ज्यादातर बड़े शहरों में एक्सक्लुसिव जेनेरिक मेडिकल स्टोर होते हैं, लेकिन इनका व्यापक प्रचार नहीं होने से लोगों को इनका फायदा नहीं मिलता आजकल हर प्रकार की जानकारी इंटरनेट के जरिये आसानी से हासिल की जा सकती है। ब्रांडेड और जेनेरिक दवाओं की कीमत में अंतर का पता लगाने के लिए एक मोबाइल एप 'समाधान और हैल्थकार्ट भी बाजार में उपलब्ध है। दरकार है कि आज लोग जेनेरिक दवाओं के बारे में जानें और खासतौर पर गरीबों को इस ओर जागरूक करें ताकि वे दवा कंपनियों के मकडज़ाल में न फंसें।
सामान्य दवा या जेनेरिक दवा (generic drug) वह दवा है जो बिना किसी पेटेंट के बनायी और वितरित की जाती है। जेनेरिक दवा के फॉर्मुलेशन पर पेटेंट हो सकता है किन्तु उसके सक्रिय घटक (active ingradient) पर पेटेंट नहीं होता। जैनरिक दवाईयां गुणवत्ता में किसी भी प्रकार के ब्राण्डेड दवाईयों से कम नहीं होती....